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…तो क्या 2029 से बदल जाएगी भारत की चुनाव पद्धति! विस्तार से पढ़िए वन नेशन वन इलेक्शन की पूरी इनसाइड स्टोरी

नई दिल्ली। केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर बनाई उच्च स्तरीय कमेटी की सिफ़ारिशों को मंज़ूर कर लिया है। इसकी सूचना बुधवार को सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में कई अहम फ़ैसले लिए हैं। अश्विनी वैष्णव ने कहा, “वन नेशन वन इलेक्शन में जो हाई लेवल कमेटी बनाई गई थी, उसकी सिफ़ारिशों को आज केंद्रीय कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है। 1951 से 1967 तक चुनाव एक साथ होते थे। उसके बाद में 1999 में लॉ कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में ये सिफ़ारिश की थी देश में चुनाव एक साथ होने चाहिए, जिससे देश में विकास कार्य चलते रहें। चुनाव की वजह से जो बहुत ख़र्चा होता है, वो न हो। बहुत सारा जो लॉ एंड ऑर्डर बाधित होता है, वो न हो। एक तरीक़े से जो आज का युवा है, आज का भारत है जिसकी इच्छा है कि विकास जल्दी से हो उसमें चुनावी प्रक्रिया से कोई बाधा न आए। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में इस कमेटी का गठन किया गया था जिसने इसी साल मार्च में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में इस कमेटी का गठन किया गया था जिसने इसी साल मार्च में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
इस कमेटी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ़ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर क़ानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डॉ नितेन चंद्रा समिति में शामिल थे।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया, “समय-समय पर देश में एक साथ चुनाव कराने के सुझाव दिए जाते रहे हैं। इसलिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी गठित की गई थी। इस समिति ने सभी राजनीतिक पार्टियों, जजों, अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले बड़ी संख्या में विशेषज्ञों से विचार-विमर्श कर के ये रिपोर्ट तैयार की है।
इस रिपोर्ट में आने वाले वक्त में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगरपालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने के मुद्दे से जुड़ी सिफारिशें दी गई थीं।
रिपोर्ट की सिफ़ारिश थी कि चुनाव दो चरणों में कराए जाएं। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव कराए जाएं। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव हों। इन्हें पहले चरण के चुनावों के साथ इस तरह कोऑर्डिनेट किया जाए कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के सौ दिनों के भीतर इन्हें पूरा किया जाए। इस सिफ़ारिश में ये भी कहा गया कि इसके लिए एक मतदाता सूची और एक मतदाता फोटो पहचान पत्र की व्यवस्था की जाए। इसके लिए संविधान में ज़रूरी संशोधन किए जाएं। इसे निर्वाचन आयोग की सलाह से तैयार किया जाए।


कमेटी ने किस-किस से की थी बात

191 दिनों में तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे जिनमें से 32 राजनीतिक दल ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के समर्थन में थे।
इस रिपोर्ट में कहा गया था, केवल 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 दलों ने न केवल साथ-साथ चुनाव प्रणाली का समर्थन किया बल्कि सीमित संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए ये विकल्प अपनाने की ज़ोरदार वकालत की।
रिपोर्ट में कहा गया कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का विरोध करने वालों की दलील है कि “इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा। ये अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा।
रिपोर्ट के अनुसार इसका विरोध करने वालों का कहना है कि “ये व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएगी।

वन नेशन वन इलेक्शन’ को लेकर क्या हैं चिंताएं और तर्क

गृह मंत्री अमित शाह घोषित कर चुके हैं कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ अगले पांच साल के अंदर लागू किया जाएगा।
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने स्टोरी के सिलसिले में बीबीसी संवाददाता संदीप राय से कहा था कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ कोई आज की बात नहीं है। इसकी कोशिश 1983 से ही शुरू हो गई थी और तब इंदिरा गांधी ने इसे अस्वीकार कर दिया था।
प्रदीप सिंह ने बताया था, चुनावों में ब्लैक मनी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है और अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो इसमें काफ़ी कमी आएगी। दूसरे चुनाव ख़र्च का बोझ कम होगा, समय कम ज़ाया होगा और पार्टियों और उम्मीदवारों पर ख़र्च का दबाव भी कम होगा।
उनका तर्क था, पार्टियों पर सबसे बड़ा बोझ इलेक्शन फ़ंड का होता है। ऐसे में छोटी पार्टियों को इसका फ़ायदा मिल सकता है। क्योंकि विधानसभा और लोकसभा के लिए अलग-अलग चुनाव प्रचार नहीं करना पड़ेगा।

विरोध करने वालों के क्या हैं तर्क?

कांग्रेस पार्टी सारे देश में साथ चुनाव करवाने को सही नहीं मानती। उच्च स्तरीय कमेटी के समक्ष रखे अपने विचारों में पार्टी ने कहा था, “एक साथ चुनाव करवाने से संविधान के मूलभूत ढांचे में बड़ा परिवर्तन होगा।
पार्टी ने कहा था कि ये संघीय ढांचे की गारंटी के विरुद्ध और संसदीय लोकतंत्र के ख़िलाफ़ होगा।
कांग्रेस ने इस तर्क को निराधार बताया कि चुनाव कराने का ख़र्च बेहद ज़्यादा होता है। पार्टी ने कहा कि ऐसे किसी देश में एकसाथ चुनाव कराने की योजना की जगह नहीं है जहां पर सरकार चुनने के लिए संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है।
वहीं आम आदमी पार्टी ने भी वन नेशन वन इलेक्शन को ख़ारिज किया था, उसने कहा था कि ये संविधान के बुनियादी संरचना के ख़िलाफ़ है।
सीपीएम ने भी इसको ख़ारिज किया था। पार्टी ने ज़ोर देते हुए कहा था कि एकसाथ चुनाव कराने का विचार मूलभूत रूप से लोकतंत्र विरोधी है और संविधान से मिले संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली की जड़ पर हमला करता है। सौ.BBC

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