प्रतापगढ़। देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले चंद्रशेखर आजाद की कर्मस्थली प्रतापगढ़ जनपद रहा है। सदर तहसील स्थित मतुई नमक शायर गांव में रहकर आजाद ने अपने साथियों के साथ प्रिंटिंग प्रेस चलाया, बम की फैक्ट्री भी खोली।लखनऊ स्थित काकोरी में नौ अगस्त 1925 को सरकारी खजाने के लूट की रूपरेखा चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में मतुई नमक शायर गांव में ही गढ़ी गई थी। चंद्रशेखर आजाद ने मतुई नमक शायर में ही बम की फैक्ट्री खोलने के साथ ही प्रिंटिंग प्रेस खोल रखा था। जहां पर अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों से लड़ने की रणनीति बनाते थे। इस ऐतिहासिक धरोहर को जिम्मेदार भुला बैठे हैं। आज भी मकान के ईंटों पर क्रांतिकारियों के निशान मौजूद हैं।देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले चंद्रशेखर आजाद की कर्मस्थली प्रतापगढ़ जनपद रहा है। सदर तहसील स्थित मतुई नमक शायर गांव में रहकर आजाद ने अपने साथियों के साथ प्रिंटिंग प्रेस चलाया, बम की फैक्ट्री भी खोली। ऐतिहासिक मतुई नमक शायर गांव के क्रांतिकारी स्व. हरिप्रसाद सिंह के मकान में आजाद के साथ उनके क्रांतिकारी दोस्तों ने अपना ठिकाना बना रखा था। काफी दिनों बाद अंग्रेजों को जब पता चला तो इस गांव को घेर लिया। हालांकि क्रांति के दीवानों का अंग्रेज बाल भी बांका नहीं कर पाए और मुंह की खानी पड़ी।असहयोग आंदोलन के दौरान जब फरवरी 1922 में (चौरीचौरा) की घटना हुई, उसके बाद बिना किसी से पूछे गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया। ऐसे में देश के तमाम नवयुवकों की तरह आजाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया। इसके बाद पंडित राम प्रसाद विस्मिल, शचींद्रनाथ सान्याल, योगेशचंद्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर एक दल हिंदुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ (एचआरए) का गठन किया। चंद्रशेखर आजाद भी इस दल में शामिल हो गए। आजाद का प्रयागराज (इलाहाबाद ) के बाद प्रतापगढ़ ठिकाना बना था। मतुई नमकशायर के इस ऐतिहासिक स्थल को भले ही पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की मांग की जा रही है लेकिन जिम्मेदार इसकी सुध नहीं ले रहे।
जंगलों से घिरे गांव में खोली थी बम बनाने की फैक्ट्री
शहर से लगभग 10 किमी दूर स्थित मतुई नमक शायर गांव के बगल से सई नदी बहती है। आसपास जंगल ही जंगल था। आजाद अपने साथियों के साथ यहां रहकर छापाखाना चलाने लगे। यहीं पर बम बनाने की फैक्ट्री भी खोल ली। इसका उल्लेख प्रतापगढ़ गजेटियर के पृष्ठ संख्या 50 पर किया गया है। इनके द्वारा छापाखाना में छापे गए पर्चे को महिलाओं के माध्यम से वितरित कराते थे। महिलाएं झउवा में नीचे पर्चा रखती थीं, ऊपर घास से उसे छिपा कर रखतीं। धीरे से लोगों तक पहुंचाया करती थीं। यहां पर चंद्रशेखर आजाद के साथ ही राम प्रसाद बिस्मिल, मंथननाथ, कुंदन लाल, शचींद्र नाथ बख्शी, अशफाक उल्ला खां सहित अन्य क्रांतिकारियों के साथ रुका करते थे।
डकैती के दौरान युवती ने छीन ली थी पिस्टल
चंद्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी संगठन ने गांवों के अमीर घरों में डकैती डालने की योजना बनाई। जिससे दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके। क्रांतिकारियों ने दिलीपपुर के पास कर्मजीतपुर (द्वारिकापुर) में 24 मई 1924 को लाला शिव रतन के यहां डकैती डाली। इस दौरान एक युवती ने आजाद की पिस्टल छीन ली। आजाद ने कसम खा रखी थी, कि वह महिलाओं पर कभी हाथ नहीं उठाएंगे, यही वजह थी कि उस महिला पर हाथ नहीं उठाया। बाद में राम प्रसाद बिस्मिल भीतर पहुंचे और युवती को एक थप्पड़ मारकर पिस्टल छीन ली। यहां पर क्रांतिकारियों से गांव वालों का भीषण मुकाबला हुआ था। इस घटना से आजाद काफी दुखी हुए और फैसला किया कि अब कभी भी किसी के घर में डकैती नहीं डालेंगे, सिर्फ सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटेंगे।
सौ. अमर उजाला